बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर -
सामाजिक विकास
सामाजिकता एक अर्जित व्यवहार है जो सामाजिक अधिगम या सामाजीकरण का परिणाम है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है तथा आगे चलकर एक प्रौढ़ की भूमिका निभाता है। अतः सामाजिक विकास का बालक के जीवन में विशेष महत्व है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से बालक में उन गुणों का विकास होता है जो किसी सभ्य एवं सामाजिक व्यक्ति के व्यवहार में पाये जाते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा ही बालक में धीरे-धीरे सामाजिक व्यवहार सम्बन्धी परिपक्वता आती है। नवीन व्यवहारों का विकास, रुचियों में परिवर्तन एवं मैत्री सम्बन्धों में विस्तार आदि सामाजिक विकास द्वारा ही सम्भव होता है। इसी कारण कहा जाता है कि जिसमें सामाजिक गुणों का विकास हो जाता है उसमें अन्य लोगों के साथ रहने के अतिरिक्त मिलजुलकर कार्य करने की प्रवृत्ति भी प्रदर्शित होती है। (Hurlock 1978 )। सामाजिक विकास को परिभाषित करते हुए भिन्न-भिन्न "विद्वानों ने विभिन्न विचार प्रस्तुत किये हैं, उनमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-
"सामाजिक विकास वह प्रक्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति में उसके समूह के आदर्शों के अनुरूप वास्तविक व्यवहार विकसित होता है।"
"Social development is the process by which an individual is led to development actial behaviour according to the standard of his group."
- चाइल्ड (Child 1950)
"सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप व्यवहार की योग्यता का अर्जन सामाजिक विकास कहा जाता है।'
"Social development means acquistion of the ability to behaviour in accordance with social expectation."
- हरलॉक (Hurlock, 1978)
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि सामाजिक विकास का व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्व है तथा एक सभ्य एवं सामाजिक प्राणी बनने के लिए बालकों को सामाजिक प्रत्याशाओं के अनुरूप व्यवहार करना पड़ता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया सामाजिक विकास का एक रूप है।
सामाजिक विकास के प्रक्रम
(Process of Social Development)
हरलाक (Hurlock) के अनुसार इस प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन प्रक्रम सन्निहित होते हैं
1. समाज अनुमोदित व्यवहार का अधिगम (Learning of Socially Approved Behaviour) - प्रत्येक बालक को अपने सामाजिक समूहों के आदर्शों के अनुरूप व्यवहार प्रतिमान सीखने पड़ते हैं। जब वे अपने व्यवहार में अपने समूह की मान्यताओं, आदर्शों व रीतिरिवाजों का प्रदर्शन करने लगते हैं तब उन्हें सामाजिक कहा जाता है।
2. समाज अनुमोदित भूमिकाओं का निर्वाह ( Playing Approved Social Roles) - प्रत्येक समूह में सदस्यों के लिये मान्यता प्राप्त व्यवहार प्रतिमान होते हैं और सदस्यों में उनके अनुरूप व्यवहार करने की प्रत्याशा की जाती है। जैसे माता-पिता, शिक्षक, अधिकारी एवं छात्रों से एक निश्चित व्यवहार की प्रत्याशा की जाती है।
3. सामाजिक अभिवृत्तियों का विकास (Development of Social Attitude) - एक सभ्य एवं सामाजिक प्राणी के लिये यह आवश्यक है कि बालक व्यक्तियों तथा सामाजिक गतिविधियों के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण विकसित करे। ऐसा करके ही वह समूह का अनुमोदन प्राप्त कर सकता है तथा सामाजिक समायोजन स्थापित कर सकता है।
सामाजिक विकास की विशेषताऐं
सामाजिक विकास की विशेषताएं निम्नलिखित है-
1. आरम्भिक सामाजिक प्रतिक्रियायें (Early Social Responses ) - जन्म के समय कोई भी बालक सामाजिक व आसामाजिक पैदा नहीं होता है। जैसे-जैसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आस-पास के व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है वह उनके प्रति प्रतिक्रियाऐं प्रदर्शित करने लगता जैसे- रोता हुआ बालक माँ को देखकर चुप हो जाता है। सामाजिक प्रतिक्रियाऐं ही सामाजिक विकास की प्रारम्भिक चरण है। यह से सामाजिक विकास का प्रारम्भ होता है।
2. बालकों के साथ प्रतिक्रिया (Social Responses Towards Children ) - सामाजिक विकास की प्रक्रिया एकतरफा नहीं होती हैं। जैसे-जैसे बालक का सामाजिक दायरा बढ़ता है तो वह अपने समूह के बालकों के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान करने लगता है। छ-सात माह का बालक अन्य बालकों के रोने पर उसकी ओर आकर्षित हो जाता है
तेरह-चौदह माह में बालक समान आयु के बालकों के साथ खेलने लगता हैं किन्तु इस समय सहयोग कम द्वन्द्व अधिक होता है। लगभग दो वर्ष की आयु में सहयोग की भावना का विकास प्रारम्भ होता हैं।
3. सामूहिक प्रतिक्रियाए ( Responses Towaerds Groups ) - लगभग तीन से चार वर्ष की आयु में बालक सामूहिक क्रियाओं में भाग लेने लगता है। इस समय बालक का समूह छोटा होता है। इस समय उसके अन्दर खेलों की भावना का विकास होता हैं। खेलों के माध्यम से समूह मे वह अपनी सामाजिक प्रतिक्रियायें करता है। इस अवस्था में सामाजिक विकास तीव्रगति से होता हैं। इस अवस्था में उसके भीतर अनेक सामाजिक गुणों जैसे सहयोग, सहानुभूति मित्रता, प्रतिस्पर्धा, आशा पालन आदि गुणों का विकास होता है। ये गुण बालकों की प्रगति में सहायक होते है और उनके अच्छे व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं।
4. सामाजिक प्रतिक्रियायें (Social Responses ) - सामाजिक प्रतिक्रियाओं से तात्पर्य सामाजिक सदस्यों के साथ अपने विचारों का अदान-प्रदान करना है। सामाजिक प्रतिक्रियाओं के दौरान ही बालक सामाजिक समायोजन करना सीखता है। सामाजिक समायोजन के लिए वह दूसरों के व्यवहारों को सीखता है तथा अपने वह व्यवहार जो समाज द्वारा मान्य नहीं है उन्हें छोड़ने का प्रयास करता है और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार प्रतिक्रियाऐं करता है। सामाजिक प्रतिक्रियाओं के दौरान अनेक सामाजिक विशेषताओं का प्रर्दुभाव होता है। जो निम्नलिखित है-
(i) सहयोग (Co-operation) - सहयोग भी सामाजिक समायोजन के लिए आवश्यक सामाजिक तत्व है। इस भावना से शत्रु भी मित्र हो जाता है। अपना सहयोग देकर तथा दूसरों सें सहयोग लेकर कोई भी व्यक्ति बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है और अपने लक्ष्यों में सफलता प्राप्त कर सकता हैं।
(ii) सहानुभूति ( Sympathy) - सामाजिक प्रक्रियाओं के दौरान जहाँ एक ओर बालकों में संघर्ष पाया जाता है वही दूसरी ओर उनमें सहयोग और सहानुभूति भाव भी पाये जातें है। सहयोग और सहानुभूति बालक के सामाजिक व्यवहार में आयु वृद्धि के सथा परिवर्तन आता जाता हैं प्रारम्भ में यह सहानुभूति परिवार के सदस्यों तक ही सीमित रहती है किन्तु धीरे-धीरे यह समाज के सदस्यों के प्रति विकसित हो जाती है।
(iii) प्रतिस्पर्धा (Comptition ) - प्रतिस्पर्धा बालक को प्रगति की ओर अग्रसर करती है। प्रत्येक बालक दूसरे बालक से आगे निकलना चाहता है। प्रतिस्पर्धा का कारण कुछ भी हो सकता है जैस पढ़ाई, खेल, माता-पिता तथा शिक्षकों का प्यार आदि। प्रतिस्पर्धा का विकास तभी होता है जब वे समाज की सीमा में प्रवेश करते हैं।
(iv) झगड़ा तथा मारपीट (Quarrel and Aggression ) - जब कोई बालक खेलों में अपना प्रभुत्व दिखाता है तो अन्य बालक उसके निर्देशों और सुझावों को स्वीकार नहीं करते है तो उनमें सघर्ष होने लगता हैं। प्रभुत्व प्रेमी बालकों में झगड़ा एवं मारपीट अधिक दिखाई देता है। यदि माता-पिता अपने बच्चे को उचित प्रशिक्षण देते है तब यह भावना कम हो जाती हैं।
(v) निषेधात्मकता ( Negativism ) - सामाजिक प्रक्रियाओं के दौरान बालक नकारात्मक व्यवहार तब करता है जब कोई उसकी इच्छापूर्ति में बाधक बनता है। या उसकी क्रियाओं में हस्तक्षेप करता है। निषेधात्मक व्यवहारों के दौरान वह वस्तुओं को तोड़ने लगता है, भूमि पर लेट जाता है, छोटे बच्चों को मारने लगता है तथा बड़ों की अवज्ञा करता है कभी-कभी निषेधात्मकता की अवस्था मे बालक तर्क भी करने लगता है बालक ऐसा व्यवहार अपने सम्मान की रक्षा के लिए करता है।
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- प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
- प्रश्न- आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- प्रश्न- सन्तुलित आहार क्या है? सन्तुलित आहार आयोजित करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
- प्रश्न- आहार द्वारा कुपोषण की दशा में प्रबन्ध कैसे करेंगी?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में आहार को अति संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- आहार में मेवों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- सन्तुलित आहार से आप क्या समझती हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- वर्जित आहार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैशवावस्था में पोषण पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- शिशु के लिए स्तनपान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- शिशु के सम्पूरक आहार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- किन परिस्थितियों में माँ को अपना दूध बच्चे को नहीं पिलाना चाहिए?
- प्रश्न- फार्मूला फीडिंग आयोजन पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- 1-5 वर्ष के बालकों के शारीरिक विकास का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 6 से 12 वर्ष के बालकों की शारीरिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए उनके लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
- प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
- प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये।
- प्रश्न- एक सुपोषित बच्चे के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- वयस्क व्यक्तियों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की प्रमुख पोषण सम्बन्धी आवश्यकताएँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- एक वृद्ध के लिए आहार योजना बनाते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
- प्रश्न- वृद्धों के लिए कौन से आहार सम्बन्धी परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है? वृद्धावस्था के लिए एक सन्तुलित आहार तालिका बनाइए।
- प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
- प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
- प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिए एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगी?
- प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था क्या है? इसकी विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था का क्या अर्थ है? मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक विकास का क्या तात्पर्य है? शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले करकों को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक विकास का क्या अर्थ है? क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए एवं मध्य बाल्यावस्था में होने वाले क्रियात्मक विकास को समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक कौशलों के विकास का वर्णन करते हुए शारीरिक कौशलों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक विकास के लिए किन मानदण्डों की आवश्यकता होती है? सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- बालक के सामाजिक विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण से आप क्या समझती हैं? इसकी प्रक्रियाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास से क्या तात्पर्य है? इनकी विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर बाल्यावस्था में सामाजिक विकास का क्या तात्पर्य है? उत्तर बाल्यावस्था की सामाजिक विकास की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेग का क्या अर्थ है? उत्तर बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ लिखिए एवं बालकों के संवेगों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- बालकों के संवेग कितने प्रकार के होते हैं? बालक तथा प्रौढों के संवेगों में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- संज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए। संज्ञान के तत्व एवं संज्ञान की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? भाषा के मापदण्ड की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- भाषा से आप क्या समझती हैं? बालक के भाषा विकास के प्रमुख स्तरों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भाषा के दोष के प्रकारों, कारणों एवं दूर करने के उपाय लिखिए।
- प्रश्न- मध्य बाल्यावस्था में भाषा विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक बुद्धि का आशय स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- बच्चों में भय पर टिप्पणी कीजिए।
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- प्रश्न- संवेगात्मक अवस्था में होने वाले परिवर्तन क्या हैं?
- प्रश्न- संवेगों को नियन्त्रित करने की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- क्रोध एवं ईर्ष्या में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- बालकों में धनात्मक तथा ऋणात्मक संवेग पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के अधिगम विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के मनोभाषिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक के हकलाने के कारणों को बताएँ।
- प्रश्न- भाषा विकास के निर्धारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषा दोष पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भाषा विकास के महत्व को समझाइये।
- प्रश्न- वयः सन्धि का क्या अर्थ है? वयः सन्धि अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - (a) वयःसन्धि में लड़के लड़कियों में यौन सम्बन्धी परिपक्वता (b) वयःसन्धि में लैंगिक क्रिया-कलाप (e) वयःसन्धि में नशीले पदार्थों का उपयोग एवं दुरूपयोग (d) वय: सन्धि में आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
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